सर्वमंगला माता मंदिर में
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सर्वमंगला आश्रम

सिमरिया घाट पर स्थित सिद्धाश्रम कालीपीठ के सर्वमंगला आश्रम में आज बच्चों को मुफ्त शिक्षा, बेसहारा विधवाओं व बुजुर्गों को आश्रय के साथ उनके रहने, भोजन व स्वास्थ्य का पूर्ण ख्याल रखा जाता है. शिक्षा में बच्चों को वैदिक ज्ञान से लेकर वर्तमान शिक्षा के सभी पहलू पढ़ाए जाते हैं. स्वामी चिदात्म्नजी महाराज याद दिलाते हैं कि जगत जननी मां सीता का जन्म इसी मिथिला की पावन भूमि में हुआ था. वो राजा जनक की बेटी थी, इसके अलावा मिथिला धरती को भारत के कुछ महान ऋषिओं को जन्म देने का गौरव प्राप्त है. न्याय दर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि, वैशेशिक दर्शन के प्रवर्तक कणाढ, संख्या दर्शन के कपिल ऋषि, मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी सभी मिथिला भूमि के हैं. इनके अलावा प्रकांड विद्वान कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गंगेसौप्धाया और महान कवि विद्यापति इसी धरती के हैं। जिन्होंने संसार को अपने अलौकिक ज्ञान से परिचित करवाया. साथ ही आधुनिक युग के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी इसी सिमरिया भूमि के पुत्र हुए.

स्वामी चिदात्म्नजी महाराज का मानना है की सिमरिया में कुम्भ की पुनर्स्थापना से हिंदू समाज में एक नया जोश उत्पन होगा. साधू संतों की वाणी पूरब में दूर-दूर तक फैलेगी. वैदिक परम्पराओं की जड़े और गहरी होंगी और देश की एकता अखंडता के साथ साथ राज्य का उद्धार होगा. कुम्भ के विभिन्न पहलुओं को हिंदू समाज दोबारा अपना रहा है. कुम्भ की महिमा को समाज अपना रहा है यानी कुम्भ सिर्फ 4 जगहों पर होने वाला कोई मेला नहीं है ये एक अलौकिक धरोहर है जिसे जन-जन तक पहुचना है.

64 योगिनी मंदिर

सिमरिया का सबसे पवित्र काली स्थान दूर-दूर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यहां काली की पूजा कई रूपों में की जाती है। यहां नील काली का विशेष आकर्षण है। 64 योगिनी मंदिर में मां काली भैरव के साथ विराजती हैं। मंदिर में काली के 64 अलग-अलग रूप भी हैं। तंत्र साधना करने वाले तांत्रिकों के लिए भी यह आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के पास पवित्र गंगा का प्रवाह पवित्र सिद्ध काली योगिनी मंदिर की शोभा बढ़ाता है। मंदिर के अंदर दुर्गा की मूर्ति आगंतुकों और भक्तों को आकर्षित करती है। मां काली की विधि-विधान से पूजा-अर्चना वैदिक परंपरा के अनुसार की गयी. मुख्य मंदिर के अंदर पंच मुखी महादेव का मंदिर भी है। यह एक प्राचीन मूर्ति है. हम इस पवित्र स्थान सिमरिया को नमन करते हैं।

परम पूज्य करपात्री अग्निहोत्री
स्वामी चिदात्म्नजी महाराज

परम पूज्य करपात्री अग्निहोत्री स्वामी चिदात्म्नजी महाराज को बिहार में एक महान योगी का दर्जा लोगों ने दिया हुआ है. योग विद्या, वेद, वैदिक रीति रिवाज, हिंदू परम्पराओं और तंत्र में उनकी बेहद बारीक पकड़ है. बाल ब्रह्मचारी स्वामी चिदात्म्नजी महाराज ध्यान की गहराइयों में उत्तर चुके हैं. आज पश्चिम जगत जिस समाधि के रास्तों को तलाश रहा है, स्वामी चिदात्म्नजी महाराज उसमें पूर्ण  हैं. लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलाना, दिन दरिद्रों की मदद करना उनके आश्रम की पहचान है.

परम पूज्य करपात्री अग्निहोत्री स्वामी चिदात्म्नजी महाराज की प्रेरणा से सिमरिया में पुनः अर्धकुम्भ के आयोजन का संकल्प लिया गया है. उनके मुताबिक हिंदू समाज और देश के लिए ये बहुत जरूरी है की कुम्भ उन जगहों पर दोबारा लगे जहाँ वो वैदिक काल में लगता रहा है. अब सिमरिया ने पहल कर दी है लुप्त हुई परम्पराओं को जीवित करने की.

सिमरिया कुम्भ

वैसे तो गंगा उत्तर से पूरब की तरफ बहती है, लेकिन बिहार के सिमरिया में गंगा उत्तरायनी हो जाती है यानी कुछ दूर के लिए ये उत्तर की ओर बहती हैं जो इसकी पवित्रता को और बढ़ा देता है. गंगा की चौड़ाई यहां देखते ही बनती है. लगता है जैसे नदी नहीं हो सागर हो गयी हो. सिमरिया में बहती गंगा की धार में कुछ ऐसा सम्मोहन है कि आप आकर्षित हुए बिना नहीं रहेंगे. लोग कहते हैं कि सिमरिया घाट की महानता काशी से कम नहीं है. वेद पुराणों की बात करें तो किसी समय ये स्थान शाल्मली वन के नाम से जाना जाता था जो बाद में सिमरिया हुआ. रुद्रयामल तंत्र और बाल्मिकी रामायण में मिथिला के इस इलाके को समुद्र मंथन की भूमि बताया गया है. साथ ही इसका स्पष्ट जिक्र है कि इसी स्थान पर देवताओं के बीच अमृत वितरण हुआ. इस रूप में ये कुंभ की जननी स्थली हो गयी और तुला राशि में लगने वाले पहले प्रथम कुंभ की स्थली भी सिमरिया ही थी.